Wednesday, April 27, 2011

जनता जनार्दन के कारनामें



जिस जनता के लिए कानून बनाया जाता है वही जनता कानून तोड़ती है। ‍जो जनता सत्ता में तानाशाह या भ्रष्टों को बिठाकर स्वयं पर अत्याचार करने के लिए बाध्य करती है वही जनता जन आंदोलन कर सत्तापक्ष को उखाड़ने की बात करती है।




जो जनता लोकतंत्र से उकता गई है वह तानाशाही का पक्ष लेती है और जो तानाशाही से त्रस्त हो गई है वह लोकतंत्र की मांग करती है और जो दोनों से उकता गई है वह धार्मिक कानून या कट्टरवाद के पक्ष में हाथ उठाती है। इस सबके अलावा वह कम्युनिज्म के भी पक्ष में हो ही लेती है।


दरअसल जनता को दिमाग नहीं होता, कहना चाहिए की भीड़ एक दिमागहीन झूंड है। ऐसा झूंड जो कभी भी कुछ भी सोच और कर सकता है। धर्म, कम्यूनिज्म या अन्य कोई भी व्यवस्था जनता ने जनता के लिए ही बनाई है और जनता ही उसके जाल में उलझकर मर गई।


क्या आपको नहीं लगता की धर्म, समाजवाद और राजनीति उसी तरह है कि जनता ने उन्हें अजर अमर रहने का वरदान दिया और अब वह ही जनता को मारने में लग गए- भस्मासूर। हालांकि जनता को भी मरने में मजा आता है तभी तो अराजकता, क्रांति और असंतोष बना हुआ है और यह बना ही रहेगा।


क्योंकि पृथ्वी घुम रही है, दिन और रात होते रहे हैं और इस घुर्णण गति के चलते जो अमेरिका कभी भारत की जगह था आज अमेरिका है और अब वह फिर से भारत होना चाहता है। सोचे कि हम बहत आधुनिक हो लिए अब बर्बर युग या कहें कि मध्य युग की ओर जनता लौटना चाहती है, लेकिन वह दोष इस्लाम को देती है, लोकतंत्र को देती है और ना जाने किस किस तंत्र मंत्र को।

खैर, आज इतना ही। इतने से ही आप जनता बनने से बच जाएं तो मैं समझूंगा की मेरा लिखना सार्थक हुआ अन्यथा तो बड़े बड़े बक बक कर मर गए पर तोताराम तो तोता ही रहे।

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