Friday, April 22, 2011

आवारा विचारों के झरोखों से..



कचरा चीजों को दिमाग में रखने का कोई तुक नहीं, जैसे दुनिया के सारे संविधान, धर्म के कानून, कम्युनिस्टों की विचारधाराएँ और संसार की वे सारी बातें जिससे परिवार, समाज या राष्ट्र में अलगाव फैलता हो या जो बचकानी हो। व्यर्थ का डाडा दिमाग में रखने से बेहतर है कि इसे फार्मेट कर दें। वही चीजें रखें जो जीवन को सुंदर, शांतिपूर्ण, संगीतमय और अहिंसक बना सकें। बुद्धत्व के करीब ला सके।


दुनिया में ऊँच-नीच, असमानता, नक्सलवाद, आतंकवाद आदि सभी बुराईयों का कारण है लोगों का लोगों के साथ व्यवहार का तरीका और भेदभाव किया जाना। बड़ी और महँगी शिक्षा दी जाती है, लेकिन यह नहीं सीखाया जाता है कि हम लोगों से किस तरह से मिले और हम सकारात्मक कैसे सोचें।


एक हिंदू मुसलमान से मिलते वक्त यह सोचकर मिलता है कि यह एक मुसलमान हैं उसी तरह मुसलमान भी सोचता है। गरीब से मिलते वक्त अमीर यह सोचकर मिलता हैं कि यह गरीब हैं। सारे भारतीय अमेरिकियों से मिलते वक्त यह सोचते हैं कि यह गोरे हैं हमसे श्रेष्ठ हैं। यही सोच घातक हैं।



कितना अजीब है कि एक आदमी जब किसी दूसरे आदमी से मिलता है तो यह नहीं सोचता की यह भी आदमी है, जबकि जंगल का कोई भी पशु और पक्षी इस मामले में मनुष्यों से बेहतर है। एक शेर को अपने धर्म, क्षेत्र और भाषा का नाम नहीं मालूम। अच्छा है कि उसे यह सब कुछ मालूम नहीं हुआ अन्यथा वह मानवों के खतम करने से पहले ही अपना अस्तित्व मिटाने का इंतजाम कर लेता।................

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